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Kendra Bharati - केन्द्र भारती - दिसम्बर 2017

Posted By: Pulitzer
Kendra Bharati - केन्द्र  भारती - दिसम्बर 2017

Kendra Bharati - केन्द्र भारती - दिसम्बर 2017
Hindi | 52 pages | True PDF | 15.9 MB


वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः :: राष्ट्र शब्द ‘नेशन’ का समानार्थ नहीं है। हिन्दी में दो अलग-अलग अर्थों के वाचक राष्ट्र शब्द प्रचलित हैं। एक शब्द राज् धातु से बना हुआ शब्द है - राज-दीप्तौ़त्र प्रत्यय त्र अतिशय प्रकाशमान्, द्युतिमान्, दीप्तिमान। यह दीप्ति मनुष्य में पैदा होती है। वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहितः - वेद की उक्ति है - हम राष्ट्रभाव में जागरूक होकर अग्रणी बनें। जब व्यक्ति में सच्चरित्र और विचारों में सत्त्व गुण का उद्रेक होता है तो वह दीप्तिमान् हो जाता है। उस समय उसे राश्ट्र कहा जाता है। ऐसे कई राष्ट्रसंज्ञर्क व्यक्ति जहाँ रहते हैं वह भूमि भी राष्ट्र कही जाती है।

दूसरा राष्ट्र शब्द रा-दाने धातु से ष्ट्रन् प्रत्ययपूर्वक बनता है। इसका अर्थ है - अतिशय दानशील, अतिशय त्यागषील। भारत को त्याग भूमि कहा जाता है और संसार की अन्य भूमियों को भोगभूमि। जीवन जीने की दो ही पद्धतियाँ होती हैं। पहली शैली यज्ञयोगमयी शैली है। अभी-अभी संघ प्रमुख माननीय मोहन भागवत ने कहा है कि हिन्दू जीवन शैली है। भोगमय जीवन हिन्दुत्व की पहचान नहीं है।

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